: कहानी रामा मेडिकल कॉलेज के एच०ओ०डी डॉक्टर सुशील(५०) उनकी पत्नी शिक्षिका चंद्रभान(४८) वा बेटा शिखर(१८) बेटी खुशी(१६) के इर्द-गिर्द घूमती है।
सुबह का समय सूरज हल्की लालिमा के साथ सोफे के ऊपर खुशी फोन चलाती हुई कहती है मां…… चाय पीनी है मुझे।
मां- सोफे से उठ जा मुंह हाथ धोकर मेरे पास आ…
खुशी- सर्दी बहुत लग रही है उठने का मन नहीं करता आप लाकर दे दो ना बाद में सब कर लूंगी….
मम्मी- उठ जा नहीं तो मार पड़ेगी तुझे, बहुत बिगड़ गई है तू़…
अंदर के कमरे से,
कठोर आवाज में-“सुबह-सुबह तुम लोग क्यों चीख रहे हो” शांत नहीं रह पाते वैसे भी आज पूरी रात मैं सोया नहीं….
सुबह जरा सी आंँख लगी और तुम लोग सोने नहीं देते।
चंद्रप्रभा-“अपनी बेटी को समझा दीजिए बिस्तर पर लेटे-लेटे चाय मांगती है”
डॉक्टर सुशील-तुम दे क्यों नहीं देती?
सुबह उठने का मन नहीं होता होगा उसका….
बच्ची है अभी।
चंद्रप्रभा- ” आपने ही बिगाड़ रखा है दोनों को
सुबह से मैं पूरा काम करूं और तुम सब आराम फरमाओ।
अभी स्कूल भी जाना है, मुझे सब काम मेरे सर पर चढ़ा है तुम लोग भी कुछ किया करो।
डॉक्टर सुशील- “हां ठीक है”कर लेंगे, इतना क्यों चिल्लाती हो?
चंद्रप्रभा अपनी बेटी के पास आते हुए,,,,,
ले ढकोल ले चाय… और कोई हुकुम हो तो कहना रानी साहिबा…
मैं तो ठहरी नौकर सभी की।
चंद्रप्रभा- “सुनते हो शिखर के पापा”
सुशील- हां बोलो
चंद्रप्रभा-“अभी चाय गरम है अगर पीनी हो तो बताएं”
नहीं तो बार-बार गर्म नहीं होगी।
साफ-साफ कह देती हूं,,,,
सुशील- “ले आओ चाय”
चंद्रप्रभा चाय का कप रखते हुए!
क्या हुआ परेशान है, क्या?
नहीं-नहीं वह यूं ही कुछ तनाव लग रहा है!
कोई बात हो तो बताना मुझे आप …
हां कुछ सोच रहा था मैं।
क्या?
यही कि पहले कोरोनावायरस से डर डर कर दिन रात मरे, अब सुना है फिर एक नया वायरस आ रहा है,विदेशों में तो फैल चुका है यहां पता नहीं क्या होगा?
अरे आप भी ना
यह भी कुछ सोचने वाली बात है।
जो सबका होगा वह अपना भी होगा…फिर आपदा तो आती रहती हैं..उनका निदान भी तो होता है!
डॉक्टर सुशील- आंखों में प्रॉब्लम चल रही है, और डॉक्टर कहते हैं की मुझे कुछ वर्षों बाद दिखना बंद हो जाएगा।
सोचता हूं बच्चे साथ देंगे मेरा या नहीं बुढ़ापे में…..
चंद्रप्रभा- आप भी बिना फालतू वाली बातें सोचते हैं,,,जिसका ना सर है ना पैर….
आखिरकार जो समस्या आती है उसका समाधान भी तो होता है और फिर हम इतने वर्षों में इससे बड़ी बड़ी मुसीबत को पार करके बाहर आए हैं और आज इतनी छोटी बातों को लेकर आप इतना परेशान हो रहे हैं आप तो मुझे सांत्वना देते थे और आज!
और रही बच्चों वाली बात
बच्चे साथ जरूर देंगे आखिर उनको मैंने संस्कार दिए हैं और मेरे संस्कार कभी खराब नहीं हो सकते और आपकी आंखों को भी कुछ नहीं होगा
आप चिंता मत करें हम सब साथ हैं।
यह कहते हुए चंद्र प्रभा कमरे से बाहर आती है और डॉक्टर साहब अपना कलम और कागज लेकर लिखना प्रारंभ कर देते हैं,,,,,
अगले दिन…..
डॉक्टर सुशील निर्णय लेते हैं कि मुझे सब को मार डालना होगा क्योंकि हमारा भविष्य नर्क की गोद में चला जा रहा है।
फिर हथौड़ी निकालकर अपनी पत्नी को मार डालते हैं,और अपने दोनों बच्चों का गला घोट कर मार डालते हैं।
(मौत के घाट उतारने के दौरान वहां पर भी प्रतिक्रियाओं को काट दिया गया है ताकि सभी पढ़ सके)
10 मिनट बाद
डॉक्टर सुशील- हे भगवान यह क्या कर दिया मैंने!
मेरे बच्चे…. मेरी पत्नी…..
सब को मार दिया!
अब क्या होगा?
मेरी बेटी को तो सुबह चाय चाहिए होती है….सर्दी में चद्दर से बाहर नहीं आता कोई!
मेरी पत्नी तो सुबह से काम करती थी,,,,,उसको भी मार दिया मैंने…..
रक्त से भरे घर में डॉक्टर सुशील चिल्लाते हुए हे राम!हे भगवान!मैंने यह क्या कर दिया…..
कोई समय घड़ी होती
तो सब कुछ पीछे कर देता मैं।
मात्र 10 मिनट का ही तो समय था।
जिसमें मैंने सब कुछ तबाह कर दिया।
खुद को भी और अपनी पत्नी को और अपने दोनों बच्चो के भविष्य को।
मैं मरता क्यों नहीं?
कितना प्यार करती थी मेरी पत्नी मुझे!
मेरी बेटी मेरा बेटा मेरे बगैर सोता नहीं है… अब क्या होगा?
मेरी नकारात्मक सोच ने मेरे बच्चे मेरी पत्नी को निगल लिया।
हाय मेरे हाथों को रहम नहीं आया,,, उन बच्चों की जान लेने में।
जिनको बचपन से मैंने बड़ा सहेज कर रखा था, एक सुई तक चुभने नहीं दी।
आज वह मेरे सामने रोते रहे तड़पते रहे और मैंने रहम नहीं किया कितना जालिम हूं मैं।
डॉक्टर सुशील दोनों हाथ को जोड़कर सब से माफी मांगते हैं अब तो उठ जाओ….
मुझे माफ कर दो…..बहुत बड़ी गलती कर दी मैंने…. चिल्लाते है।दीवार पर अपना सर मारते हैं, हे राम! यह क्या हो गया मुझसे।
मेरी पत्नी कहती थी कि हम सब साथ हैं और आज मैं!
सुशील अपने भाई को फोन करते हैं…और घटना बताते हैं।
कुछ समय बाद कमरे में सन्नाटा छा गया और डॉक्टर अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को मृत छोड़कर भाग निकला।
शेष अगली कड़ी में…..
नोट: कहानी किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य हेतु नहीं लिखी गई है उद्देश्य सिर्फ इतना है की कहानी को पढ़कर इस तरह की नकारात्मक सोच का निदान हो सके।